बैठा नदी के पास यही सोचता रहाकैसे बुझाऊँ प्यास यही सोचता रहा शादाब वादियों में वो सूखा हुआ दरख़्तकितना था बेलिबास यही सोचता रहा कितने लगे हैं घाव मैं करता रहा शुमारकितना हुआ उदास यही सोचता रहा इस अंधी दौड़ में करे किस सिम्त अपना रुख़हर फ़र्द बदहवास यही...
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मुद्दत से ब्लॉग पर अपनी मौजूदगी दर्ज नहीं करा पाया। दरअसल प्रदेश में चल रहे विधान सभा चुनाव में लगातार प्रशासनिक व्यस्तता के चलते ब्लॉग की गलियों से गुजरना जरा कम ही हो पाया। इसी बीच दिल्ली के २०वे विश्व पुस्तक मेले में मेरी ग़ज़लों/नज़्मों...