gaftgu
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फ़र्क़ नहीं पड़ता हम दीवानों के घर में होने से वीरानी उमड़ी पड़ती है घर के कोने कोने से अपनी इस कम-ज़र्फ़ी का एहसास कहाँ ले जाऊँ […]
वो साल था 2013, उन दिनों मैं बतौर स्ट्रिंगर अमर उजाला चंदौसी में कार्यरत था। चंदौसी वही जगह है जहां से हिंदी के महान ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार […]
बैठा नदी के पास यही सोचता रहाकैसे बुझाऊँ प्यास यही सोचता रहा शादाब वादियों में वो सूखा हुआ दरख़्तकितना था बेलिबास यही सोचता रहा कितने लगे हैं […]