आहटें

करीब पांच साल के बाद शायर पवन कुमार का नया मजमुआ ‘आहटें’ हमारे हाथ में है। 2012 में आई अपनी पहली किताब ‘वाबस्ता’ के हवाले से शायरी की जो नई बुनियाद हमारे बीच रखी गयी थी, उस पर घरौंदा बताने हुए ‘आहटें’ हमारे बीच है।

किताब की शक्ल-ओ-सूरत की बात करें तो कवर पेज पर ही शायर का एक सियाह-सफेद चित्र है, जिसका बैकग्राउंड हल्के बैगनी रंग का है, आंखों को बेहद सुकून देने वाला। किताब के पीछे मुरादाबादी तरीके के फानूस टंगे हैं और बेलबूटे सजे हैं। पहली नजर में ही किताब आपको भा जाएगी।

अब किताब का सफ़र करें तो बालीवुड के उभरते गीतकार मनोज मुंतशिर ने शायर पवन कुमार के लिए अपने एहसास बयां किए हैं। किताब की भूमिका शमसुर्रहमान फारूकी ने लिखी है। अगले ही सफे पर शायर पवन कुमार ‘…हाजिर हूं’ शीर्षक के साथ हमारे बीच अपनी आमद दर्ज कराते हैं और आमद का पहला ही शेर आपको खुद-ब-खुद इस मजमुए में डूब जाने को मजबूर करेगा। शेर कुछ यूं है –

दो कश्तियों में रहने का अहसास हर घड़ी,
आसाँ सुखनवरी है कहां नौकरी के बीच।

पेशे से आईएएस और मिजाज़ से शायर पवन कुमार अपनी शायरी में आपको कई सफर कराते हैं। वो एक ही वक्त में पिता भी हैं, पति भी, महबूब भी, दार्शनिक भी, रहबर भी और एक आशिक भी। मिसरों में कई जगह नए प्रयोग किए हैं।

भाषा बेहद रोमांचित करने वाली है। अदबी लिहाज से उर्दू को करीने से अपनी शायरी में सजाकर पेश किया है। वहीं ऐसे शेर भी हैं जो एक बार जहन में उतर जाएं तो फिर कभी न हटें। हिंदुस्तानियत को जीने की कोशिश अपने शेरों में की है। जो साझा विरासत है वो उनके शेरों में दिखती है। एक शेर में यूं कहा कि –

इश्क वो लड़कपन का क्या ही लुत्फ देता था,
शब-बारात थीं रातें और दिन दशहरे थे।

शेर का आखिरी मिसरा पूरी तहजीब और सामाजिक प्रेम को समेटे हुए है। खालिस उर्दू शायरी में पापा, पेपरवेट जैसे अंग्रेजी शब्दों का इतना सहज प्रयोग किया है कि लगता ही नहीं कि ये दूसरी भाषा के शब्द हैं। वहीं अपनी रोजाना की जिंदगी को बड़े सलीके से एक शेर में कह दिया है।

शाम हुई दफ्तर से निकले
जैसे चिड़ियाघर से निकले।

किताब में करीब 100 गजल हैं। जो हर एहसास को अपने अंदर समेटे हैं। खास बात ये की जितनी संजीदगी और मकबूलियत के साथ बड़ी बहर में शायर अपने पढ़ने वालों से गुफ्तगू करता है, उतनी ही जिम्मेदारी से छोटी बहर में भी वह अपनी बात कह लेता है। ये बड़ा मुश्किल है। लेकिन शायर साधिकार दोनों बहर पर अपनी पकड़ बनाए हुए दिखाई दिया है। शिल्प लाजवाब है।

हां यहां तब्सिरा करते हुए ये जरूर ध्यान दिलाऊंगा कि उनकी शायारी बोलचाल ही भाषा से ऊपर है। आप अगर सतही उर्दू के जानकार हैं जो अपको उनकी शायरी तक पहुंचने में वक्त लग सकता है। लेकिन अच्छी बात ये है कि जिन कठिन शब्दों का प्रयोग उन्होंने अपनी शायरी में किया है, उसके मायने भी साथ ही दिए गए है।

इस लिहाज से बहुत मुश्किल भी नहीं आएगी और नए शब्द और अर्थ भी आपको मिल जाएंगे। कुछ जगहों पर उनकी शायरी कुछ देर में आप तक पहुंचती है। ये केवल इसलिए क्योंकि भाव जितना सहज है, शिल्प उतना ही कठिन। लेकिन उसके बावजूद एक समय के बाद आप उस शेर की गहराई में उतर ही जाएंगे।

बहरहाल शायर का ये मजमुआ शायरी के तलबगारों को बेहद राहत अता फरमाने वाला है। यदि आप इस मजमुए से महरूम रहे तो आज के दौर के एक बेहद मकबूल शायर के अंदाज को गंवा देंगे।

“सन्नाटों को जैसे ज़ुबान परोसती चलती हैं पवन कुमार की गज़लें ” – मनोज मुंतशिर 

पुस्तक का नाम : आहटें (शायरी)
शायर : पवन कुमार
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य : 200 रुपये
उपलब्धता : आनलाइन या बुक स्टाल से

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